Tuesday, 19 June 2018

जन्म कुंडली में बंधन योग


जन्म कुंडली में बंधन योग
मैं यहाँ बंधन योग का अर्थ जेल अथवा जेल जैसी यातना वाला बंधन कदापि नहीं है. यहाँ बंधन योग का अर्थ है कि कई बार मनुष्य स्वयं को किसी ना किसी बंधन में महसूस करता रहता है जिसकी वजह से वह कभी अपने विचारो को खुल कर बयान नहीं कर पाता है. उसे अंदर ही अंदर घुटन सी महसूस होती है|

जातक के जन्म के समय कुंडली में ऎसे कुछ विशेष ग्रह योग बन जाते हैं जिनके कारण व्यक्ति खुद को बंधन में समझता है. उस पर कोई दवाब हो या न हो लेकिन वह सदा खुद पर दबाव महसूस करता है.

एक तरह से यह योग पाप मध्य/ शुभ मध्य की या पाप कर्तरी योग की तरह ही है | जैमिनी सुत्रम के अनुसार लग्न या आत्मकारक से 2रे या 12वें स्थान में यदि सम या तुल्य संख्यक ग्रह हों तो बंधन योग होता है| इसीतरह लग्न या आत्मकारक से 3रे (तीसरे) - 11वें (एकादश भाव) अथवा 4थे (चौथे) – 1Oवें (दशम भाव) अथवा 5वें (पंचम) – 9वें (नवम भाव) अथवा 6ठे (छठे – 8वें (आठवें) भाव में भी सम या तुल्य संख्यक ग्रह हो तब भी व्यक्ति खुद को बंधन में महसूस करता है लेकिन इस बंधन योग का प्रभाव लग्न के बंधन से कुछ कम रहता है.

यदि 6ठे (छठे – 8वें (आठवें) भाव भी सम या तुल्य संख्यक ग्रह हो ग्रह हैं तो भी व्यक्ति बंधन में बंधा अनुभव करता है. इस स्थिति में सातवाँ भाव भी बंध जाता है जिससे वैवाहिक जीवन पर भी दुष्प्रभाव देखा जा सकता है.

यहाँ पर सम या तुल्य संख्यक को कई विद्वान ग्रहों की संख्या से लगाते हैं परन्तु हमारे अनुभव के इस का अर्थ संख्या से नही अपितु एक ही प्रकार के ग्रहों से होना चाहिए जैसे की दोनों तरफ या तो केवल शुभ ग्रह हों या केवल अशुभ ग्रह, शुभ ग्रह दोनों तरफ होने से तो यह योग अच्छा होता है |

यदि यह योग पाप ग्रहों से बनता तो ज्यादा पीड़ादायक होता हैं यदि लग्न भी पाप प्रभाव में है अथवा पीड़ित है या लग्नेश पाप प्रभाव में है या पीड़ित है तब जातक के लिए ज्यादा परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं. 
जैमिनी सूत्र में तो केवल लग्न और आत्मकारक के लिए ही यह योग लिखा है परन्तु इसे सभी ग्रहों/ भावों पर देखना चाहिए|

अब यदि आप की कुंडली में लग्न, आत्मकारक अथवा चन्द्रमा पर आपको यह योग दिखाई दे रहा है तो आप उपायों के द्वारा काफी हद तक इस योग के बुरे प्रभाव को कम कर सकते हैं | उपाय में जो ग्रह पीड़ित हो रहा है सबसे पहले उसे पुष्ट करने के उपाय करें पुष्ट करने के लिए ग्रह के मन्त्रों का जप अनुष्ठान/ पूजा , रत्न धारण , ओषधिय स्नान करें तथा जो ग्रह उसे परेशान कर रहें हैं उन ग्रहों के दान करने चाहिए |


गुरुजी श्री शक्तिमोहन जी के मार्गदर्शन व मेरी माँ के आशीर्वाद से CREATED BY :- वीरभद्र अग्रवाल सम्पर्क करें :
E-Mail : veerkota@gmail.com, gyastro@gmail.com,  https://www.facebook.com/guruseva.jyotish, http://lifegraph-gyastro.blogspot.in

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