Wednesday, 20 June 2018

त्रिशांश कुंडली (D30)


त्रिशांश कुंडली (D30)

पाराशर मुनि ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शुभाशुभ विचार करने हेतु वर्ग कुंडलियों की उपयोगिता बताई है। जन्मपत्रिका से किसी घटना का संकेत मिलता है तो उसकी पुष्टि संबधित वर्ग कुंडली से होती है। ऐसी ही एक वर्ग कुंडली है त्रिशांश अर्थात् D-30। जिसका उपयोग जातक के जीवन में होने वाले अरिष्ट की जानकारी हेतु किया जाता है। 

त्रिशांश कुंडली प्रायः त्रिशांश कुंडली का उपयोग स्त्री का चरित्र, स्वभाव ज्ञात करने में किया जाता है परंतु पाराशर मुनि के अनुसार अरिष्ट अर्थात् रोग, दुर्घटना एवं घोर संकट की पुष्टि त्रिशांश कुंडली द्वारा अच्छे ढंग से हो सकती त्रिशांश एवं अरिष्टकाल ज्योतिष के अनुसार किसी भी जन्मपत्रिका में अरिष्ट, रोग एवं रोग पीड़ित अंग का अनुमान निम्न बिन्दुओं के आधार पर लगाया जाता है कि 

1. जन्म लग्न पर पाप प्रभाव हो 

2. लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में हो 

3. भाव एवं भावेश तथा कालपुरूष की संबंधित राशि एवं उसका स्वामी तथा कारक एक साथ पीड़ित होने पर उस राशि एवं भाव को व्यक्त करने वाले अंग में रोग पीड़ा होने का अनुमान लगाया जाता है। 

4. यह रोग 6,8,12वें एवं मारक भाव तथा इनसे संबंध रखने वाले ग्रहों की दशान्तर्दशा में संभव होता है और इसकी पुष्टि त्रिशांश में करनी चाहिए। 

प्रायः ऐसा माना जाता है कि त्रिशांश लग्नेश के शुभयुक्त, शुभदृष्ट होने एवं शुभ भावों में होने से व्यक्ति का जीवन दुर्घटना एवं अनिष्ट रहित होता है। अनेक कुंडलियों में त्रिशांश पर अध्ययन करने के उपरांत आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं जिनसे निम्न धारणा पुष्ट होती है कि जन्मकालीन कोई ग्रह यदि त्रिशांश कुंडली में 

1. अपनी उच्च राशि में हो, या 

2. अपनी नीच राशि में हो, या 

3. वर्गोत्तम हो या स्वराशि या अपनी दूसरी राशि में हो 

4. त्रिशांश कुंडली में 6,8,12वें भाव-भावेश से संबंध हो तो जातक को अरिष्ट के प्रति सावधान हो जाना चाहिए। 

ऐसा ग्रह अपनी दशान्तर्दशा में रोग एवं मृत्यु तुल्य कष्ट या मृत्यु भी दे सकता है चाहे वह उस जन्मपत्रिका का लग्नेश या राजयोगकारक ही क्यों न हो। इसे एक प्रकार से अनिष्ट घटित होने का संभावित काल माना जा सकता है। 


  

त्रिशांश कुंडली (D30) से स्त्री का चरित्र व स्वभाव


मंगल का त्रिशांश :- अगर जातिका का जन्म मिथुन मे लग्न 0° से 5° के बीच या फिर कन्या लग्न मे 25° से 30° के बीच है तो मंगल का त्रिशांश होगा | ऐसी जातिका कपट प्रपंच कुशल ,झूठ बोलने वाली व दिखावटी प्यार करने वाली होती है| 

शुक्र का त्रिशांश :- अगर जातिका का जन्म मिथुन के 25° से 30° या कन्या लग्न के 0° से 5° के बीच हुआ है तो जातिका का शुक्र का त्रिशांश होगा| ऐसी जातिका कामुकि या प्रबल कामेच्छा से पीडित व रति सुख की लोभी होती है| 

बुध का त्रिशांश :- अगर जातिका का जन्म मिथुन लग्न के 18° से 25° या कन्या के 8° से 12°. के बीच हुआ है तो जातिका बुध का त्रिशांश होता है | ऐसी जातिका हंसमुख मिलनसार ,विविध कलाओ व क्रियाकलापो को जानने वाली होती है| 

गुरू का त्रिशांश :- अगर जातिका का जन्म मिथुन लग्न के 10° से 18° के बीच हुआ है या कन्या के 12° से 20° के बीच हुआ है तो गुरू का त्रिशांश होता है| ऐसी जातिका सर्वगुण संपन्न,धार्मिक, सदाचारिणी, साध्वी तथा गुरू व ब्राह्मण की सेवा करने वाली होती है| 

शनि का त्रिशांश :- अगर जातिका का जन्म मिथुन लग्न के 5° से 10° या फिर कन्या लग्न के 20° से 25° के बीच हुआ है तो जातिका का शनि का त्रिशांश होता है| ऐसी जातिका भोग व लौकिक सुखो से ज्यादा लगाव नही रखती | ऐसी जातिका वंध्या होती है|

FUTURE POINT के ARTICLE से  लिया गया है
 

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