बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश जी के शपथ
ग्रहण के समय की मुहर्त कुंडली का विशलेषण
ग्रह स्पष्ट –
इस मुहर्त कुंडली का
विशलेषण कई विद्वानो द्वारा पहले ही किया जा चुका है इसलिए मैंने केवल उन्ही
बिंदुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है जो की कहीं जाने-अनजाने छूट गये हैं |
शपथ ग्रहण काल की कुंडली में लग्न मेष राशि
में है जो कि दो सौम्य ग्रहों – वृहस्पति एवं बुध -
से दृष्ट है तथा इस पर कोई पाप दृष्टि नहीं है. क्षितिज पर मेष राशि के 25 वें अंश
का उदय, अमृतघटी की चाप के अंतर्गत आता है जो
इस सरकार को निश्चय ही दृढ़ता प्रदान करता है. इस कुंडली में, दो ग्रह स्वराशिस्थ
(वृहस्पति एवं शनि), एक उच्च्र राशिस्थ (राहू), तीन वर्गोत्तम (वृहस्पति, शुक्र
एवं शनि), दो पुष्कर नवांश में (सूर्य एवं वृहस्पति) और एक अमृतघटी की चाप के
अंतर्गत (केतु) आता है जो इस कुंडली की सकारात्मक उर्जा का प्रमाण है. केवल एक
ग्रह – शुक्र – नीच राशि गत है; किन्तु उसका राशीश बुध
लग्न से केंद्र मैं और नीच भंग राजयोग बना रहा है साथ ही लग्न पर दो शुभ ग्रहो की
पूर्ण दृष्टि इस मुहूर्त में शपथ लेने वाली सरकार और बिहार की जनता, दोनों के लिए
एक अत्यंत शुभ संकेत है.
नवम में स्वराशिस्थ वृहस्पति, जो कि लग्न
को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है D-1, D-9, D-16, D-20
में स्वराशिस्थ तथा D-24, D-40 तथा D-45 में उच्चराशिस्थ (कल्पवृक्ष वर्ग में) भी है , वह जन हितकारी नीतियों और विकास
योजनाओं का आश्वासन देता है.
दशम भाव में स्वराशिस्थ शनि, D-1, D-3 , D-4, D-9 में स्वराशिस्थ होने के साथ-साथ D-10 में उच्च राशिस्थ तथा D-12 एवं D-40 में मूलत्रिकोणस्थ (कल्पवृक्ष वर्ग में) होने के अतिरिक्त D-10 में सप्तमेश शुक्र के साथ क्षेत्र परिवर्तन करके D-10 में महायोग भी बना रहा है. यह भी
निश्चय ही बिहार में एक श्रेष्ठ, विकासोन्मुखी, लक्ष्यों को पूर्ण करने वाली एवं
स्थिर सरकार का भरोसा दिलाता है.
वैसे तो इस कुंडली में पञ्चतारा में से
कोई भी वक्री नहीं है तथापि उच्चरशिगत राहु – जो कि सदैव वक्र गति से ही चलता है -
उसकी दशम भाव पर दृष्टि कार्य काल के मध्य में शीर्ष स्तर पर फेरबदल की चर्चा को
जन्म दे सकती है.
एकादश भाव (राजस्व) के वैकल्पिक स्वामी – राहू - का द्वितीय भाव (कोष) में उच्च
राशिस्थ होना राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार का सन्देश देता है.
सप्तमभाव में स्थित बुध की दृष्टि श्रेष्ठ
जनसंपर्क का कारण बन सकती थी किन्तु वह षष्ठभाव से क्षेत्रपरिवर्तन (खल योग) कर
रहा है तथा नीचसम्बन्धी भी हो गया है और केवल दो पाप ग्रहों (मंगल एवं शनि) से दृष्ट
है – कोई शुभ दृष्टि नही है – अतः वह असामाजिक तत्वों द्वारा राजनीति
की आड़ में भांति भांति के षड्यंत्रों एवं उपद्रवों की चेतवानी दे रहा है.
लग्न भी पापकर्तरी में – वह भी मंगल एवं राहु की - होने से यह स्पष्ट
है कि असामाजिक तत्व इस सरकार के लिए नित नयी समस्याएं उत्पन्न करते रहेंगे.
यद्यपि लग्नेश मंगल पूर्ण षडबल से युक्त
है और इस कुंडली सर्वाधिक बलि ग्रह है किन्तुं उसके द्वादशस्थ होने, दो पाप ग्रहों
– शनि एवं केतु से दृष्ट होने एवं नीच
सम्बन्धी (नीच राशिगत शुक्र की पूर्ण दृष्टि) होने तथा सौम्य ग्रहों की दृष्टि का
सर्वथा अभाव होने से से भी इस संभावना की पुष्टि होती है. वैसे तो मंगल पर शनि की
दृष्टि विवाद एवं संघर्ष को जन्म देती है किन्तु यहाँ यह दशमेश की लग्नेश पर
दृष्टि भी है और विवादमय सही, किन्तु एक सजग शासन की सूचक भी हो सकती है.
चतुर्थ भाव पर दो पाप ग्रहों - शनि एवं
केतु की दृष्टि, शुभ दृष्टियों का सर्वथा अभाव, चतुर्थेश चन्द्रमा का अष्टम भाव
में नीच राशिस्थ, राहू - केतु अक्ष में होना तथा सूर्य एवं केतु की पाप-कर्तरी में
होना इत्यदि कुछ ऐसे योग हैं जो तंत्र में गंभीर भ्रष्टाचार, असंतुष्टों द्वारा
हिंसक प्रदर्शनों तथा प्राकृतिक आपदाओं व दुर्घटनाओं की चेतावनी देते हैं किन्तु
अष्टम भाव – जहाँ कि यह योग बन
रहा है – उसका शुभ मध्य में होना यह भी दर्शाता
है कि इन संकटों का निराकरण भी उत्तम श्रेणी का होगा.
गुरुजी श्री शक्तिमोहन जी
के मार्गदर्शन में BY :- वीरभद्र अग्रवाल
Whatsup Number - 9587431525
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